डॉ0 विपिन कुमार शुक्ल
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान,
फ0अ0अ0 राज0 स्ना0 महाविद्यालय,
महमूदाबाद, सीतापुर
भूमिकाः
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा संयुक्त राष्ट्र की एक अत्यंत लोकप्रिय और एक मायने में सबसे अधिक सफल और सृजनात्मक खोज है। यह संयुक्त राष्ट्र की एक ऐसी गतिविधि है जो आरंभिक दौर से ही इस सार्वभौमिक संगठन का अभिन्न अंग रही। साथ ही साथ 1988 में इस गतिविधि के लिए संयुक्त राष्ट्र को नोबेल शांति पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
शांति परिरक्षा में अंतर्निहित तत्व जैसे युद्ध विराम, विराम संधि तथा पर्यवेक्षक दल आदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व में भी प्रचलित विचार रहे हैं’ परंतु एक विचार के रूप में शांति परिरक्षा द्वितीय विश्व युद्धोत्तर काल में सर्वप्रथम 1956 में प्रयोग में आया जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वेज नहर संकट मामले में ‘यूनाइटेड नेशंस इमरजेंसी फोर्स’ का गठन किया।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा का आशय संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में विभिन्न देशों की सैनिक एवं असैनिक टुकड़ियों की उन क्षेत्रों में तैनाती से है जहां स्थानीय विवादों और संकटों की वजह से युद्ध या युद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न हो गई हों। इन क्षेत्रों में शांति परिरक्षा दलों की तैनाती का उद्देश्य उक्त विभागों एवं संकटों का निष्पक्ष निवारण, समावेशन, विमंदन और समाप्ति होता है ताकि यह स्थानीय विवाद और संकट अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा ना बन सके।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा के विचार का उद्भवः
यद्यपि यह तथ्य पूर्ण रूप से सत्य है कि शांति परिरक्षा शब्द संयुक्त राष्ट्र चार्टर में कहीं प्रयुक्त नहीं हुआ है लेकिन कुछ विद्वान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 7 को शांति परिरक्षा के विधिक आधार के रूप में देखते हैं। इनके अनुसार संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 39 ,40, 41 ,42 और 48 कहीं ना कहीं शांति परिरक्षा हेतु कानूनी आधार प्रदान करते हैं। विद्वानों का एक ऐसा समूह भी है जो इस तथ्य को नहीं स्वीकार करता और उसका मत है कि जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद शीत युद्ध की विभीषिका के चलते बिल्कुल शक्तिहीन हो गई थी और संयुक्त राष्ट्र के मूल उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति की स्थापना में स्वयं को पंगु पा रही थी, ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के द्वितीय महासचिव ने सामूहिक सुरक्षा के विकल्प के रूप में शांति परिरक्षा के नए प्रयोग को अंजाम दिया। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा का विचार अध्याय 6 ,जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मामलों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रावधान किया गया है ,के काफी नजदीक दिखाई देता है। प्रसिद्ध विद्वान केपी सक्सेना का भी यह अभिमत है कि संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा का विचार संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 6 का अभिन्न हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र के द्वितीय महासचिव दाग हैमरशोल्ड ने शांति परिरक्षा के विचार को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 6 और 7 के मध्य की गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा का उद्देश्यः
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा का विचार वस्तुतः संयुक्त राष्ट्र की एक सबसे महत्वपूर्ण ‘सृजनात्मक खोज‘ है जो मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और कभी-कभी संयुक्त राष्ट्र महासभा के हाथ में एक ऐसे महत्वपूर्ण अन्वेषण के रूप में अस्तित्व में आई जिसका प्रयोग संयुक्त राष्ट्र ने अपने मूलभूत कर्तव्य अर्थात अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए किया। इस प्रकार ‘संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में विकसित की गई एक महत्वपूर्ण तकनीकी थी जिसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान में अपनी भूमिका को शीत युद्ध काल में भी प्रासंगिक बनाए रखा। दूसरे शब्दों में ,शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने शांति परिरक्षा के विचार को सामूहिक सुरक्षा के एक विकल्प के रूप में विकसित किया और संबंधित क्षेत्र को शीत युद्ध राजनीति से बचाए रखने करने का प्रयास किया।
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बी बी घाली के अनुसार संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नवत हैं-
1- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवादों की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान करना और कुशल राजनय के माध्यम से उन विवादों के समाधान का प्रयास करना।
2- यदि विवाद उत्पन्न हो चुका है तो शांति स्थापना का प्रयास करना और उसके बाद विवादित पक्षों के मध्य संपन्न हुए समझौते को लागू करने में सहायता करना।
3- शांति स्थापना के पश्चात उस शांति को बनाए रखने के लिए और विवादित क्षेत्र में विष्वास निर्माण उपायों को लागू करना।
संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा के आधारभूत सिद्धांत:
सैद्धांतिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा के सिद्धांतों का निरूपण लिखित रूप में कहीं नहीं किया गया है लेकिन व्याहारिक .ष्टिकोण से शांति परिरक्षा के सिद्धांतों के रूप में कुछ आधारभूत सिद्धांतों को निम्न वत प्रस्तुत किया जा सकता है-
1- विवादित पक्षों की सहमति:
यहां पर सहमति का आशय यह है कि संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा सेना को किसी क्षेत्र विशेष में तैनात करने से पूर्व विवादित पक्षों की सहमति ली जानी चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यदि विवादित पक्षों की सहमति से उस क्षेत्र में परिरक्षा सेना को तैनात किया जाता है तो विवादित पक्षों उसके साथ सहयोग करेंगे और समस्या के समाधान में मदद मिलेगी।
2- तटस्थता:
तटस्थता न केवल सैद्धांतिक तौर पर शांति परिरक्षा सेना के लिए अनिवार्य है बल्कि यह तटस्थता सेना के कार्यों और व्यवहार में पूर्ण रूप से .ष्टिगोचर होनी चाहिए तथा विवादित पक्षों को दिखनी भी चाहिए। जहां तक संभव हो शांति परिरक्षा सेना को विवादित पक्षों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए ऐसा करने से विवादित पक्षों के मध्य शांति परिरक्षा सेना का विश्वास बना रहता है और उस क्षेत्र विशेष में सेना को अपनी भूमिका के निर्वहन में कोई कठिनाई नहीं होती । शशि थरूर के अनुसार -‘‘तटस्थता शांति सेना के लिए ऑक्सीजन की भांति है‘‘। यह एकमात्र वह तरीका है जिसके माध्यम से शांति सेना पर दोनों पक्षों को विश्वास बना रहता है और जिस क्षण यह विश्वास टूट जाता है शांति सेना विवादित पक्षो में से एक पक्ष द्वारा विरोधी के रूप में देखी जाने लगती है और स्वयं उस समस्या का हिस्सा बन जाती है जिसके समाधान हेतु उसे भेजा गया है ।
3- हथियारों का न्यूनतम प्रयोग:
हथियारों का न्यूनतम प्रयोग या बिल्कुल प्रयोग न करना संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा का आधारभूत सिद्धांत आरंभ से ही रहा है ।1948 में जब पहली बार न्छज्ैव् के रूप में फिलिस्तीन में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को तैनात किया गया था तब उसे बिना शस्त्रों के तैनात किया गया था क्योंकि ऐसा माना गया कि विवादित क्षेत्र में शांति सेना के संभावित विरोधी निशस्त्र शांति सेना के विरुद्ध हथियार नहीं उठाएंगे । सिद्धांत रूप से हथियारों के गैर प्रयोग को 1956 में मध्य पूर्व में तैनात की गई ‘यूनाइटेड नेशन इमरजेंसी फोर्स’ के गठन के दौरान स्वीकार किया गया और तदोपरान्त इस सिद्धांत को आधारभूत सिद्धांत के रूप में अपनाया जाता रहा है।
यद्यपि बाद में संयुक्त राष्ट्र सेना को आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध कराने की छूट दी गई आत्मरक्षा के अंतर्गत व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ-साथ यह विचार भी शामिल किया गया कि यदि शांति सेना को अपने कर्तव्य निर्वहन में कोई बाध्यकारी शक्ति द्वारा रोका जाता है तो उसके विरुद्ध शांति सेना हथियारों का प्रयोग कर सकती है।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा सेना के प्रकार:
परंपरागत रूप से संयुक्त राष्ट्र सेना को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है- प्रथम पर्यवेक्षक दल तथा द्वितीय शांति परिरक्षा सेना।
पर्यवेक्षक दल:
विवादों को और अधिक तीक्ष्ण होने से बचाने के लिए पर्यवेक्षक दलों के प्रयोग का विचार संयुक्त राष्ट्र से पूर्व ’राष्ट्र संघ’ में मिलता है ।द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात संयुक्त राष्ट्र में यह विचार किया गया कि कमजोर सूचना तंत्र के चलते जो विवाद और अधिक तीक्ष्ण हो जाते हैं उनको समुचित सूचना उपलब्धता के माध्यम से और अधिक तीक्ष्ण होने से बचाने के लिए पर्यवेक्षक दल की नियुक्ति विवादित क्षेत्र में अपरिहार्य है। इस प्रकार पर्यवेक्षक दलों के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ परिरक्षा की शुरुआत हुई ।यह पर्यवेक्षक दल छोटे आकार में होते थे जिनमें ऐसे सेना के अधिकारी सम्मिलित होते थे जो अधिकांशतः हथियार विहीन होते थे अथवा केवल न्यून मात्रा में हथियारों से लैस होते थे जिनका प्रयोग वह केवल आत्मरक्षा के लिए करते थे ।
सैद्धांतिक तौर पर ये पर्यवेक्षक दल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या महासभा दोनों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं लेकिन ज्यादातर समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से इन पर्यवेक्षक दलों की नियुक्ति विवादित क्षेत्रों में की गयी लेकिन जबकि शीत युद्ध के दौर में सुरक्षा परिषद शक्तिहीन हो गयी, ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र महासभा के तत्वाधान में भी इन पर्यवेक्षक दलों की नियुक्ति की गई। पर्यवेक्षक दल की नियुक्ति का आरंभिक उदाहरण 1946- 47 में बाल्कन और इंडोनेशिया में तैनात पर्यवेक्षक दल के रूप में मिलते हैं। ये पर्यवेक्षक दल मूल रूप से अपनी सरकारों के प्रतिनिधि के रूप में विवादित क्षेत्रों में काम करते थे और प्रत्यक्ष रूप से संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अधीन कार्य नहीं करते थे इसीलिए इन पर्यवेक्षक दल को संयुक्त राष्ट्र परिरक्षा दलों की संज्ञा नहीं दी जाती है। दूसरे शब्दों में यह पर्यवेक्षक दल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आंख और कान होते हैं जो विवादित क्षेत्र में हो रहे नवीन परिवर्तनों की जानकारी सुरक्षा परिषद को उपलब्ध कराते हैं और इस सूचना के आधार पर सुरक्षा परिषद महत्वपूर्ण कार्यवाही सुनिश्चित करती है।
शांति परिरक्षा सेना:
हल्के हथियारों से सजी सैन्य टुकड़ी, जिसके पास अन्य सैन्य साजो सामान उपलब्ध होते थे, को शांति परिरक्षा सेना के रूप में विवादित क्षेत्रों में तैनात किया जाता है। सामान्य रूप से यह सैन्य टुकड़ी हथियारों का प्रयोग आत्मरक्षा के लिए करती है लेकिन यदि शांति परिरक्षा सेना को उनके कर्तव्य निर्वहन में कोई बाधा पहुंचाई जाती है तो उस बाधा से निपटने के लिए भी शांति सेना हथियारों का प्रयोग कर सकती है । प्रथम बार 1956 में यूनाइटेड नेशन इमरजेंसी फोर्स के रूप में शांति सेना की नियुक्ति मध्य पूर्व में की गई।
जहां तक पर्यवेक्षक दल और शांति सेना के कार्यों तथा अधिकार क्षेत्र का संबंध है दोनों में बहुत मामूली अंतर होता है। कई अवसरों पर दोनों एक समान कार्यों का निष्पादन करते हुए दिखाई देते हैं, जैसे-किसी युद्ध विराम का पर्यवेक्षण करते समय और वहां की स्थिति को संयुक्त राष्ट्र महासचिव को रिपोर्ट करते समय दोनों पर्यवेक्षक दल और शांति सेना के कार्य लगभग एक समान होते हैं, परन्तु शांति सेना जब किसी युद्धविराम का पर्यवेक्षण कर रही होती है तो पर्यवेक्षण के साथ-साथ शांति सेना दोनों विवादित पक्षों के मध्य एक बफर जोन के रूप में कार्य करती है जबकि पर्यवेक्षक दल का कार्य मुख्य रूप से वहां पर हो रहे
परिवर्तनों पर निगाह रखना और रिपोर्ट करना होता है।
शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा की प्र.ति में कुछ परिवर्तन .ष्टिगोचर होते हैं जिसके परिणाम स्वरूप शांति सेना के कुछ नवीन प्रारूप अस्तित्व मेंआए हैं-
बहुआयामी शांति दल:
परंपरागत शांति सेना कार्य और प्र.ति के संदर्भ में मूलतः सैनिक थी परंतु शीत युद्ध के बाद तैनात किए जाने वाले बहुआयामी शांति दल में प्रशासनिक और नागरिक सेवा पक्ष को भी समाहित किया गया। इन बहुआयामी शांति दलों की तैनाती मुख्य रूप से उन जटिल समस्या ग्रसित क्षेत्रों में की गई जहां उन्हें मानवीय संकट जैसे भूख ,बीमारी, सामूहिक हत्या जैसी समस्याओं से जूझना था और जहां राज्य अवसंरचना लगभग डावांडोल हो चुकी थी ।इन क्षेत्रों में बहुआयामी शांति दलों को शांति व्यवस्था बनाए रखना, मानव अधिकार सुरक्षित रखना ,चुनाव संपन्न कराना ,पुनर्वास, प्रशासन आदि सभी क्षेत्रों में अपना योगदान देना होता है।
शांति प्रवर्तन दल:
शांति प्रवर्तन दलों की तैनाती मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पर विवादित पक्षों के मध्य कोई समझौता ना हो पाया हो। ऐसी स्थिति में यह शांति प्रवर्तन दल विवादित पक्षों की सहमति और सहयोग के अभाव में कार्य करते हुए शांति बहाली का प्रयास करते हैं ।प्रायः इन प्रवर्तन दलों की तैनाती उन समस्या ग्रसित क्षेत्रों या देशों में की जाती है जहां सरकार या तो पूर्ण रूप से पंगु हो चुकी होती हैं अथवा शक्तिहीन हो चुकी होती हैं। ऐसी स्थिति में इन शांति प्रवर्तन दलों को स्थानीय विरोधियों का सामना करना भी पड़ता है। यही कारण है कि इन शांति प्रवर्तन दलों को शक्ति प्रयोग का भी अस्थाई अधिकार प्रदान किया जाता है। ध्यान देने योग्य है कि इन शांति प्रवर्तन दलों की तैनाती अलग से किसी रुप में नहीं की जाती है वरन् शांति परिरक्षा दलों को ही अस्थाई शक्ति प्रयोग के लिए अधि.त कर दिया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा दलों के कार्य:
किसी भी शांति परिरक्षा दल के कार्यों की प्र.ति उसको क्षेत्र विशेष में तैनात किए जाते समय प्रदान किए गए प्राधिकार पर निर्भर करती है फिर भी संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा सेना द्वारा संपादित किए जाने वाले कार्यों को मूल रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-1- शांति पर्यवेक्षण 2- शांति परिरक्षा
शांति पर्यवेक्षण:-शांति पर्यवेक्षण का अभिप्राय मूलतः पर्यवेक्षण ,जांच और प्रतिवेदन से है। एक बार जब समस्या ग्रस्त क्षेत्र में विवादित पक्षों के मध्य तात्कालिक रूप से एक समझौते के माध्यम से संघर्ष विराम स्वीकार कर लिया जाता है, तो ऐसी स्थिति में पर्यवेक्षक दल उस क्षेत्र में इस आशय से तैनात किए जाते हैं कि वे उस क्षेत्र में संघर्ष विराम को बनाए रखने के लिए आवश्यक निगरानी, जांच और सूचनाओं को संयुक्त राष्ट्र महासचिव को समय-समय पर प्रेषित करते रहेंगे । इसके अंतर्गत पर्यवेक्षक दल का मुख्य कार्य तैनाती क्षेत्र में हो रही गतिविधियों आदि की निगरानी करना तथा तथ्य संकलन कर उसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव को समय-समय पर प्रेषित करना होता है। प्रायः पर्यवेक्षक दल की तैनाती का विषय विवादित पक्षों के मध्य संघर्ष विराम के लिए हुए समझौते के अंतर्गत ही तय हो जाता है।
इसके अतिरिक्त समय समय पर इन पर्यवेक्षक दलों को शांति स्थापित करने के लिए विवादित पक्षों के मध्य मध्यस्थता, समझौता और सत्प्रयास की सुविधा भी प्रदान करनी पड़ती है। संघर्ष विराम की निगरानी के साथ-साथ विदेशी सैन्य बलों की वापसी तथा सैन्य शस्त्रों का परित्याग आदि की निगरानी करना भी पर्यवेक्षक दलों का मुख्य कार्य है।
शांति परिरक्षा: शांति परिरक्षा से आशय संघर्षरत पक्षों के मध्य एक बार शांति स्थापित हो जाने के पश्चात उस शांति को बनाए रखने से है। जब संघर्षरत पक्षों के मध्य एक संघर्ष विराम या समझौते के माध्यम से शांति स्थापित हो जाती है तब उस क्षेत्र में शांति पर रक्षा सेना की तैनाती उस क्षेत्र में उस शांति समझौते या संघर्षविराम की निगरानी करने के लिए की जाती है । पर्यवेक्षक दलों से भिन्न शांति परिरक्षा दलों की भूमिका केवल शांति समझौते या संघर्षविराम का पर्यवेक्षण नहीं होता बल्कि उस संघर्षविराम और समझौते को लागू करने और बनाए रखने की जिम्मेदारी शांति परिरक्षा दलों पर होती है। वस्तुतः शांति परिरक्षा दल संघर्षरत गुटों के मध्य एक बफर फोर्स के रूप में कार्य करते हैं।
उपर्युक्त परंपरागत कार्यों के अतिरिक्त शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात तैनात किए जाने वाले बहुआयामी शांति परिरक्षा दलों को शांति को प्राप्त करने, संघर्षरत गुटों का निशस्त्रीकरण, मानवीय सहायता प्रदान करना,असफल राष्ट्रों में प्रशासन का संचालन करना तथा चुनाव संपन्न कराना आदि कार्यों के निष्पादन का दायित्व भी सौंपा गया।
शांति परिरक्षा दलों का गठन:
संयुक्त राष्ट्र चार्टर में इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है कि शांति परिरक्षा दलो की तैनाती विवादित क्षेत्रों में किस प्रकार की जाए। जहां तक अंतर्राष्ट्रीय शांति की स्थापना का प्रश्न है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा दोनों ही क्रमशः अनुच्छेद 24(1) तथा 11( 2) के माध्यम से इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने के लिए अधि.त किए गए हैं।
इस प्रकार समय-समय पर तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा दोनों द्वारा शांति परिरक्षा दलों को समस्या के क्षेत्र में तैनात किया गया यद्यपि शांति परिरक्षा दलों की नियुक्ति का मुख्य दायित्व सुरक्षा परिषद के पास ही है। इन दलों की तैनाती एक गैर -क्रियाविधिक विषय माना जाता है। अतः इनकी तैनाती पर निर्णय हेतु सुरक्षा परिषद के सभी स्थाई सदस्यों की सर्वसम्मति अनिवार्य होती है। इन परिरक्षा दलों की कार्यवाही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की प्रधान भूमिका होती है जो समस्त कार्यवाही का निरीक्षण करता है तथा तत्संबंधी विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करता है। शांति परिरक्षा दल एक सैन्य कमांडर के अधीन काम करते हैं। यह सैन्य कमांडर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के महासचिव से आदेश प्राप्त करता है। संयुक्त राष्ट्र शांति परीक्षा दल में शामिल होने वाले सैनिक विभिन्न सदस्य देशों से आते हैं। आरंभिक दौर में सामान्य तौर पर सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के सैनिकों को शांति परिरक्षा दलो मैं सम्मिलित नहीं किया जाता था परंतु हाल के वर्षों में इन षर्तो में कुछ षिथिलता आयी है।
संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा के अनिवार्य तत्व:
जब किसी युद्ध ग्रस्त देश या संघर्षरत क्षेत्र में शांति परिरक्षा बलों की तैनाती की जाती है तो उनमें अनिवार्य रूप से कुछ अंतर्निहित तत्व समाहित किए जाते हैं ताकि वे सुचारू रूप से काम कर सकें, जो इस प्रकार हैं-
1- उचित एवं स्पष्ट प्राधिकार: जब कोई शांति परिरक्षा दल किसी क्षेत्र में तैनात किया जाता है तो उसे उस क्षेत्र में क्या कार्य करने होते हैं इस संबंध में कुछ स्पष्ट निर्देश और अधिकार प्रदान किए जाते हैं जिसे प्राधिकार कहा जाता है । यह प्राधिकार जितना स्पष्ट होता है शांति परिरक्षा दल की सफलता उतनी ही सुनिश्चित हो जाती है ।दूसरे शब्दों में किसी शांति परिरक्षा दल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि तैनाती के पूर्व उस को दिए जाने वाले प्राधिकार कितना स्पष्ट और उचित है।
2- उचित सैन्य संगठन और एकी.त आदेश प्रणाली: एक शांति परिरक्षा दल को दिए गए प्राधिकार के अनुरूप तमाम नागरिक सैन्य और राजनीतिक कार्यों का निष्पादन करना होता है। साथ ही साथ यह परिरक्षा दल विभिन्न देशों से आए हुए सैनिकों का एक समूह होता है, अतः आवश्यक हो जाता है कि दल को इस तरह से संगठित किया जाए कि वह एक एकी.त और संगठित इकाई के रूप में कार्य करते हुए अपने लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर सके।
3- सदस्य देशों का राजनैतिक समर्थन: किसी शांति परिरक्षा दल की सफलता इस बात पर काफी हद तक निर्भर करती है कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का समर्थन कहां तक उसके साथ है । इन दलों को प्राधिकार के रूप में जो समर्थन संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिया जाता है उसके साथ साथ यह भी आवश्यक होता है कि इनकी क्रियाशीलता के दौरान लगातार संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का समर्थन मिलता रहे,मुख्य रूप से उन देशों का जिन देशों के सैनिक उस शांति रक्षा दल की अंग होते हैं।
4- संघर्षरत या विवादित पक्षों का सहयोग:
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के समर्थन के साथ-साथ शांति परिरक्षा दल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि संघर्षरत गुटों का समर्थन और सहयोग उसे कहां तक प्राप्त है ।सामान्य तौर पर इन दलों की तैनाती संघर्षरत पक्षों की सहमति के उपरांत ही की जाती है लेकिन क्षेत्र में कार्य करने के दौरान संघर्षरत पक्षों के निरंतर सहयोग पर ही इन दलों की सफलता निर्भर करती है । जिस क्षण संघर्षरत पक्षों में से कोई भी पक्ष किसी कारण सहयोग नहीं करता या शांति परिरक्षा दलों के प्राधिकार को अस्वीकार करता है उसी क्षण इन दलों की सफलता संदिग्ध हो जाती है।
5- पर्याप्त वित्त:
शांति परिरक्षा दलों की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण तत्व वित्त है ।वित्त के लिए यह शांति रक्षादल पूर्णतया सदस्य देशों के द्वारा किए जाने वाले योगदान पर निर्भर करते हैं। इसके अतिरिक्त शांति परिरक्षा हेतु संयुक्त राष्ट्र के सामान्य बजट से विवाद में शामिल पक्षों के द्वारा किए जाने वाले योगदान से तथा स्वैच्छिक दान आदि से धन प्राप्त होता है ।
चूँकि शांति परिरक्षा का विचार संयुक्त राष्ट्र का एक ‘क्मतपअमक थ्नदबजपवद‘ है अतः संयुक्त राष्ट्र चार्टर में मौलिक रूप से इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र की इस गतिविधि का वित्तीय प्रबंधन कैसे होगा । आरंभिक दौर में संयुक्त राष्ट्र के अन्य बजटीय प्रावधानों की भांति शांति परिरक्षा पर होने वाले व्यय का निर्णय भी महासभा के उपस्थित एवं मतदान करने वालों के दो तिहाई बहुमत से होता था परंतु धीरे धीरे जब शांति परिरक्षा बजट अधिक बढ़ने लगा तो ऐसे में एक अलग तदर्थ खाते ;ैचमबपंस ंकीवब ंबबवनदजद्धकी बात स्वीकार की गई । 1973 में पहली बार प्रत्येक राष्ट्र को कितना योगदान करना है इस संदर्भ में एक फार्मूला तय किया गया जिसमें संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्यों पर ज्यादा भार देते हुए समस्त सदस्य देशों को चार वर्गों ए, बी, सी, डी में विभक्त किया गया । इस फार्मूले के अनुसार स्थाई सदस्यों को सामान्य बजट से 22ः अधिक, समूह बी के सदस्यों को सामान्य बजट के अनुरूप, समूह सी के सदस्यों को सामान्य बजट से 20ः कम तथा समूह डी के सदस्यों को सामान्य बजट के 1/10 की दर से शांति परिरक्षा बजट हेतु योगदान किए जाने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रों से प्राप्त होने वाले वित्त के अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा दलों को स्वैच्छिक दान तथा विवादित पक्षों द्वारा किए गए योगदान से धन की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष: संक्षेप में, संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा ने शीत युद्ध और उसकी समाप्ति के पश्चात् दोनों दौर में अन्तर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करने में अहम भूमिका का निर्वहन किया है। शीत युद्ध के दौरान जब महाशक्तियों के आपसी टकराव के चलते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् अपने मौलिक दायित्व अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की स्थापना में असफल रहा तो संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा की खोज सामूहिक सुरक्षा के एक विकल्प के रुप में की गयी, और शीत युद्ध काल में शांति परिरक्षा सेना ने कई अन्तर-राज्यीय विवादों/संघर्षो को युद्ध के आयाम ग्रहण करने से बचाने में सफल रही।
शीत युद्धोत्तर काल में जब अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले अन्तरा-राज्यीय विवादों/संघर्षो का उभार तेजी से हुआ। ऐसे स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के पास राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत उत्पन्न होने वाले इन संघर्षों/विवादों के निपटान हेतु शांति परिरक्षा की अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था। इस दौर में संयुक्त राष्ट्र शांति परिरक्षा दलों ने अपनी परम्परागत भूमिका से हटते हुए विविध नवीन कार्यो का निष्पादन किया (यथा-शांति स्थापना, प्रशासन संचालन, चुनाव सम्पादन, मानवीय संकट में सहायता आदि) तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाये रखने में महती भूमिका का निर्वहन किया।
संदर्भ सूची:
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